Friday 21 November 2008

Andhera....

समय की छोटी छोटी गलियों से
होकर जब मैं 
अंधेरे के दरवाजे पे
दबे पाँव चलता हूँ
मुझे याद आता है
मानवता का संपूर्ण इतिहास

मानवी के इश्क़
और उसकी आँखों में
उतरे डर की वजह से
मानव ने कितने यत्न के बाद
बनाया था रौशनी को
जो अंधेरे की फर्श पे
पौरुश्त्व और प्रेम 
की गाथा को सदियों
से कायम किए हुए हैं

डोर डोर तक घाना फैला 
अंधेरे में छीपी हुई सड़क
को जब मानव चीरते हुए 
चलता है जब अपने शश्त्र के साथ
आदमी की छाती चौड़ी सी हो जाती है

OMG :o
man has created so much with time 
and his consistent effort and intelligence
has completely won the state of darkness
...
though we have moon
though we have stars
though we have sun
we have created electricity
just another version light
we have torch, hallogen and CFLs
just another verion of stars
we have nuclear power stations
just another version of sun

मनुष्या चलता है
भूत से भविष्या की ओर
अनवरत अनंत 24 बाइ 7 
बहिर्गमी आकांक्षा की
अंधेरे को पीना है
हमें अमावस में भी जीना है

पत्थर, आग, रोटियाँ, पहिया... 

मनुष्या की जीवेश्ना
चलती है
हर क्षण
तेज़ गतिवान 
समय को 
पीछे छोड़ कर.. 

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जहाँ तक कायम है धरती वहाँ है अंधेरा
आदम के पीछे अंधेरा, क़यामत के आगे अंधेरा

लगा लो जीतने भी तुम रौशनी के टुकड़े
आँख बंद करो वहाँ छिपा है अंधेरा

चाँद को यूँ ही नहीं कहते हैं चाँद
चाँद से जो डरता रहता है अंधेरा

आसमान पे टाँगे यूँ पोशिदा से कुछ दरख़्त
ये खाते हैं अंधेरा, ये पीते हैं अंधेरा

ता-उमरा ज़िंदगी की दौड़ है फकत चाँदनी
अंत में मौशीकी को बस मिलता है अंधेरा


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