Friday 21 November 2008

Soorat


आँखों में सजती है तेरी सूरत
अश्क बन उभरती है तेरी सूरत

जब मॅन खोया ख़यालों में
हल्के से छू के जाए तेरी सूरत

मैं राख की मानींद सोया था
एक आग लगाए तेरी सूरत

खवाब लगाऊं रात की मिट्टी में
शबों सा सींचे तेरी सूरत

पल में दिखे, पल में खो जाए
एक धुआँ के जैसा तेरी सूरत

सुबह, शाम, दीन, रात सब बेकार
एक अजब नशा है तेरी सूरत

क्यूँ देखता हूँ आइंया इतनी देर तलक
मेरे चेहरे में बसा है तेरी सूरत

तेरे इश्क़ में खोया खोया रहता हूँ
कोई खुदा का पता पूछे, मैं दिखाऊँ तेरी सूरत

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